and this is a way of expression... reflection of the world inside us... exploration of the world, we dwell in...
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Sunday, October 27, 2013

पत्राचार : दो कविताएँ

एक कविता बड़ी पसंद है मुझे- जब मैं facebook पर था, तब भी साझा की थी। कविता काइसिन कुलीव ने लिखी है। शायद ये कविता अवचेतन में अब तक इसलिए अटकी है कि कुछ पत्रों के जवाब, जो लिखे थे, भेजे न जा सके। विचारों के ब्रह्माण्ड में कुछ समय-सुरंगों से वापस उन्हीं पलों पे लौट जाता हूँ- ताकि वो पत्र फिर फिर पा सकूँ, ताकि लिख सकूँ फिर फिर जवाब। पर पत्रों को पठाने का पल घटित होते नहीं पाता किसी भी सामानांतर संसार में।

दो कवि, दो संस्कृतियाँ, एक-दूसरे से एकदम अलग। लेकिन कविता तो एक पत्राचार है भावों का। देश, भाषा, समय को पार कर एक ही लय में गुँथी ये दो कविताएँ-

(१)
(काइसिन कुलीव की ये कविता मेरी डायरी में दर्ज हुई थी) 
(२)
हर बार प्रेम-पत्र  लिखने के बाद हर बार अपना 
हस्ताक्षर करते समय 
जरा काँप जाने वाली स्त्री 
दोष देती है मौसम को 
और फिर से शुरू करती है प्रेम-पत्र;
अबकी बार कोसती है शोर को,
खिड़की से आती हुई हवा को,
द्वार पर पड़ती हुई दस्तक को,
शेल्फ़ से गिरकर चौंका देनेवाली एक पुस्तक को,
बिस्तर पर बल खाकर गिरते समुद्र को,
बाहर बेफ़िक्र खड़े ताड़ को,
आखिर में वक़्त को।
घबराकर ढूँढती है सारा दिन किसी परित्यक्त को !
(श्रीकान्त वर्मा की कविता 'पतझर')

2 comments:

  1. Umdah imtkhab hai donon hi kavitaon ka Shivam. Pehli wali zyada dil ke qareeb ati hai. Keep your fondness for meaningful literature burning. Nice to see your comstructive interest.

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  2. bahut khoob hein dono kavitaein...wonderful...

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