and this is a way of expression... reflection of the world inside us... exploration of the world, we dwell in...
and words from our personal experiences, feelings, interests and learning.


Monday, September 27, 2010

बुल्ला दी आरसी

सवाल था ज़िन्दगी का सबसे बुरा और सबसे अच्छा अनुभव... उत्तर के बहाने थोड़ी देर बैठ के वापस ज़िन्दगी में झाँक लिया। इस ज़िन्दगी का सबसे बुरा अनुभव था- शायद तब जब मैंने एक गलती की थी, और फिर मुझे एहसास हुआ कि मैंने गलती कर दी है। लेकिन उस गलती ने मुझे इतना अकेला छोड़ दिया, दोस्त- परिवार या और कोई भी नहीं था। सब अचानक से कहीं अदृश्य हो गए, मैं माफ़ी माँगना चाहता था लेकिन माफ़ करने वाला ही नहीं था, मैं जोर-जोर से रोना चाहता था लेकिन कोई भी नहीं था ये कहने के लिए कि कोई बात नहीं, ज़िन्दगी में गिरना-संभलना तो होता ही रहता है। उस नन्ही- अकेली जान की याद आई तो समझ आया कि दुःख की गहनता कितनी सापेक्ष (relative) है... बुरा होता है गहरा उतरना, विशेषतः जब कोई वापस आने को आवाज नहीं दे रहा हो...

लेकिन अचानक से एक झटके में सब बदल गया, ज़िन्दगी का सबसे अच्छा अनुभव... गोया कि दुनिया में इतना गहरा अँधेरा सिर्फ इसलिए था कि आँखे बंद थीं। झटके से आँखे खुली और बाहर खिली धूप थी... चमकदार, रौशन। सब तरफ खुशबू फैली थी, एक बार सांस ले कर नहीं देखी थी। हर आवाज़ कितनी ताज़ा थी, पहली बार सुनने की कोशिश की थी न। उस अँधेरे में भी कोई नहीं था, इस धूप में भी कोई साथ नहीं था, लेकिन ज़िन्दगी का सबसे खूबसूरत अनुभव- जब मेरी ज़िन्दगी, मेरी ख़ुशी में किसी के आने- जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता। ये बस खिली धूप और खुली आँखों का आनंद है...

हांलाकि समय गुज़र रहा है, लोग आते हैं जाते हैं, और हर बात कुछ बदलाव तो लाती ही है। घने- काले बादल भी गुज़रते हैं आसमान से, लेकिन इस रोशनी का साथ बिलकुल नहीं छूट गया, कहीं एक छोर तो बाँधने को मिल ही जाता है। जब दुःख गहराने लगता है, तो समझ जाता हूँ कि बस आँखे झपकने लगी होंगी, या बादलों का मौसम आया होगा।

मैंने तो उस दिन भी कहा था, दोनों हथेलियों में धूप भर के कि सारी दुनिया के कण- कण में बाँट दूं ये ख़ुशी, सबको हिस्सेदार बना लूं। लेकिन दुनिया है कि खुद से उलझी हुई है। कभी बरगलाती है मुझे- आओ और हमारे साथ भी कुछ पी कर देखो, इस नशे का मज़ा लेकर देखो। मैं हँसता हूँ अब- रे दुनिया, तेरी उलझने और तेरे नशे। दुनिया कहती है कि नशे के बिना मज़े में कैसे हो, तो बोलता हूँ- तेरा नशा मैंने भी कर लिया, तेरा ही हूँ, मुझपे शक मत कर। दुनिया पूछती है- हँसते क्यों नहीं, तो कहता हूँ-तेरी ही हंसी तो हंस रहा हूँ। दुनिया पूछती है- रोते क्यों नहीं, तो कहता हूँ- तेरा ही रोना तो रो रहा हूँ। रोना- हँसना सब तेरा, मेरा क्या है...

बुल्ले-शाह खुद से पूछ रह था- "बुल्ला तू क्या जानता है कि मैं कौन हूँ?" मैं आईने में देख रहा हूँ, लेकिन जो आईने के अन्दर से मुझे देख रहा है, उसे क्या पता मैं क्या हूँ। तू दुनिया के आईने में है- दुनिया के साथ हंस, दुनिया के साथ रो....

1 comment:

  1. जब किसी ने ऐसा कहा होगा "क्या और नयी बात नज़र आती है कोई हम में, आयीना हमे देख के हैरान सा क्यूँ है?" तो जाने उसे पता था के नहीं की आईने के इस तरफ की दुनिया में इंसान कुछ ऐसे बदलता है खुद उसे भी नही पता होता की कब बदल गया, समझते हैं तुम्हारे साथ भी कुछ ऐसा ही है
    और हाँ शिवम्! ज़िन्दगी में गिरना-संभलना तो होता ही रहता है

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